सुश्रुत पंत “ज़र्रा“ पेशे से मार्केटर और तबीअत से शायर हैं. ये आई.आई.एम अहमदाबाद से एम.बी.ए करके 25 सालों से मार्केटिंग के क्षेत्र में कार्यरत हैं. ये 5 मुल्कों में रह चुके हैं जहाँ अंतरराष्ट्रीय कम्पनियों के साथ काम करते आए हैं. साथ ही साथ, ये “ज़र्रा” के तख़ल्लुस से शेर-ओ-सुख़न की दुनिया से फ़ेसबुक और यूट्यूब के ज़रिये जुड़े हुए हैं और अदबी महफ़िलों में शिरकत करते आए हैं.
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“नशेब-ओ-फ़राज़ ” का मतलब है “उतार-चढ़ाव”. इस क़िताब में 111 कलाम हैं जो सुश्रुत पंत “ज़र्रा” के पिछले 15 सालों की ग़ज़लों और नज़्मों का इंतिख़ाब है. इस दौरान ये पांच मुल्कों में रहे हैं और इस तवील सफ़र के नशेब-ओ-फ़राज़ (उतार-चढ़ाव) को इन्होंने शायरी में बयान किया है.
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